पौराणिक काल में ईरान व पर्शिया आज के अरब के इलाके में स्वर्गलोक की स्थापना थी। शास्त्रों में कहा जाता है कि स्वर्ग वह स्थान है जहां कभी भी अंधकार नहीं होता ऐसा ही स्थान अज़रबैजान में है। वहां पर आज भी ‘देमावंद’ पर्वत है। धरती सूर्य के चारो ओर टेढ़ी शक्ल में घूमती है। देमावंद पर्वत एक ऐसे विशेष कोण में है जहां सूर्य सदैव रहता है ऐसे ही विशेष स्थान के इर्द-गिर्द धरती पर वैकुंठ लोक माना जाता है क्योंकि वहां सदैव सूर्य की रौशनी रहती है प्रकाश 24 घंटे विधमान है व छाया नहीं पड़ती। उस समय में देवता, यक्ष, गन्धर्व, किन्नर, दैत्य आदि थे । वे अपने-अपने प्रकार से धर्म चलाते थे और उसी अनुसार इनके नाम पड़े । हर जाति में सबसे उंचा स्थान पुरोहित, गुरू का होता था । मुख्यतः स्वर्ग की प्राप्ति एवम् वर्चस्व/आधिपत्य के लिए देवासुर संग्राम हुआ करते थे। देवताओ के गुरू बृहस्पति व विपरीत देवता जो देवताओं से भिन्न चलते थे व जो विष्णु के उपासक नहीं थे। ऐसे असुरों के गुरू शुक्राचार्य थे। शुक्राचार्य महर्षि भृगु के पुत्र हैं। महर्षि भृगु के कृपास्वरूप ही मनुष्य को ज्योतिषीय ज्ञान प्राप्त हुआ है। महर्षि भृगु ने क्रोध वश किसी बात पर विष्णु जी की छाती पर लात मार दी थी। इससे कुपित हो देवी लक्ष्मी ने श्राप दिया कि वह कभी किसी ज्ञानी के घर नहीं आएगी, इस पर भृगु जी ने उन्हें श्राप दिया कि लक्ष्मी जी को मृत्युलोक में 16008 बार जन्म लेना पड़ेगा एवम् उन्होंने भृगुसंहिता की रचना करते हुए यह कहा कि ‘लक्ष्मी’ वैभव इत्यादि ज्ञानी के चरणों में पड़ी रहेगी। विष्णु जी ने लक्ष्मी जी से क्षमा याचना के लिए कहा तत्पष्चात् लक्ष्मी जी ने भृगु जी की उपासना की व शाप से मुक्त होने का उपाय पूछा। इस पर भृगु जी ने उन्हें क्षमादान देते हुए वरदान दिया कि मृत्युलोक में उनके सारे जन्म एक ही जन्म में हो जाऐंगें व उन्हे पतिस्वरूप विष्णु ही मिलेंगें। तत्पष्चात् द्वापर में कृष्ण ने जन्म लेकर 16000 गोपी स्वरूप लक्ष्मी एवम् भार्यास्वरूप लक्ष्मी जी का वरण किया । इसी कारण लड्डु गोपाल की मूर्ति के वक्षस्थान पर पाद चिन्ह बनाए जाते हैं। विष्णु जी उन चिन्हों के बिना अधूरे हैं। ‘इसके बारे में आगे बात की जाएगी’। इसी कारण शुक्राचार्य को दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई तथा वह असुरों के गुरू रहे। कालांतर में यही असुर प्रदेश अरब बना तथा मुस्लिम संप्रदाय की स्थापना हुई। क्राइस्ट मोहम्मद का संबंध येरुशलम से रहा, वहां तक भी इस प्रांत का विस्तार प्राचीन काल में था। इसी कारण मुस्लिम संप्रदाय में शुक्र का विशेष महत्व है इसी को पवित्र दिन ‘जुम्मा’ भी कहा जाता है इसी कारण शुक्र का कला से संबंध होने के कारण शुक्रवार को ही सिनेमा घर पर फिल्म यानि चलचित्र का प्रथम दिन घोषित होता है होती है। शुरुआत में यह शुक्र के कारण था परंतु अब यह परंपरा बन गई । शुक्राचार्य के इन विशेष गुणों के कारण धरती के साथ लगते इस ग्रह को शुक्र ग्रह कहा गया है । इस ग्रह की किरणों में तमस् और रजस् को नियंत्रित करने की अद्भुत क्षमता एवम् यह ग्रह चंचल है। शुक्र ग्रह स्त्री ग्रह कहा जाता है इसलिए मनुष्य जीवन में शुक्र स्त्री-मायास्वरूप माना जाता है । देवताओं में शुक्र लक्ष्मी जी हैं। शुक्र ग्रह मीन राशि में उच्च का होता है एवम् मीन राशि जलचर राशि है, मीन राशि की योनि गज है और गण देवता इसलिए एक देवता स्वरूप स्त्री की कल्पना की गई जो जल में खिलें पुष्प पर ‘क्योंकि शुक्र पुष्प को दर्शाता है-सौन्दर्य’ खड़े दिखाई गई हैं एवम् उसके दाएं, बाएं दो गज खड़े किए गए हैं एवम् हाथों से लक्ष्मी धन वर्षा कर रहीं हैं ।