ब्रह्मांड एक अनसुलझा तथा अनजान रहस्य है । इसके रहस्य को खोलना असंभव है । हमारे ऋषि - मुनि वैज्ञानिक थे । उनका विज्ञान किसी यंत्र पर आधारित नहीं था, उन्होंने संसार तथा अंतरिक्ष की अनदेखी बातों को समझने के पश्चात अपने बुद्धि कौशल से प्रमाणित किया परंतु उसे शब्द नहीं दे सके । इन बातों को समझने के पश्चात शायद किसी के लिए भी इन्हें शब्द देना कठिन होगा ।
ब्रह्मांड ब्रह्मा जी द्धारा रचित है । ब्रह्मा सूर्य द्धारा इंगित है, सूर्य ही ब्रह्मा है, ऐसा कहा जाता है कि सूर्य से ही कुछ बूंदे, जो आप में अत्यधिक विशाल थीं । सूर्य से छिटकर उसी के गुरुत्वाकर्षण के पाश में बंधकर उसके इर्द - गिर्द परिक्रमा करने लगी । कालांतर में केवल पृथ्वी ही ऐसा पिंड़ बना जिस पर सृष्टि निर्माण के सभी साधन उपलब्ध थे । यहां यह बात कहना भी आवश्यक है कि अन्य ग्रहों पर जीवन शायद हो भी और अपने किस्म की सृष्टि निर्माण वहां भी हो रहा हो या हो चुका हो, फिलहाल हम इसके विषय में कुछ नहीं कह सकते ।
प्रत्येक व्यक्ति अपनी बुद्धि अनुसार तथा अनुभवों के आधार पर किसी बात की सत्यता को निर्धारित करता है । इसलिए ‘सत्य के स्वरुप भी भिन्न हैं।’ हमारे शास्त्र पूर्ण सत्य एंवम पूर्ण ज्ञान पर निर्धारित हैं, जिन्हें हमारे ऋषि मुनि रुपी वैज्ञानिकों द्धारा रचा गया, परंतु वे भी अपने आप में सभी तथ्यों को स्पस्ट नहीं करते । ज्ञान कभी पूर्ण नहीं हो सकता । यह एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है ।
ब्रह्मा इस सृष्टि के रचयिता हैं इसलिए सूर्य ब्रह्म तुल्य हैं । शायद सूर्य से अलग हुए उन पिण्ड़ों में से कुछ पुनः कोई एक बूंद अलग होकर अपने -मुख्य ग्रह की परिक्रमा करने लगी जिसे उस ग्रह का चंद्रमा कहा गया ।
इन पिण्डों को मंगल, बुद्ध इत्यादि नाम दिए । इन नामों को समझने के लिए प्रत्येक ग्रह को एक देवता का नाम दिया गया तथा इन देवताओं को भी एक स्वरुप एंवम् चरित्र प्रदान किया गया । इसे इस प्रकार समझा जा सकता है ।
सूर्य:- ब्रह्मा:- जो सृष्टि के रचयिता है ।
चंद्रमा:- शिव :- जीवन का आधर ।
ब्रहस्पति:- विष्णु:- जो सृष्टि के पालनकर्ता हैं ।
चंद्रमा जल तत्व को नियंत्रित करता है । धरती पर भूमि से अधिक जल है । हम यह कह सकते हैं कि एक महासागर के बीच में भूमि के कुछ पिंड हैं जो मिलकर पृथ्वी का निर्माण करते हैं। जीवन सर्वत्र पाया जाता है । मनुष्य सृष्टि की सबसे उर्जास्वित कृति है । आज विज्ञान यह प्रमाणित कर चुका है कि हमारे शरीर में 80 प्रतिशत जल तत्व है यानि हम स्वयं भी एक छोटे से जल पिंड में गुथे हुए हाड - मांस के तथा चर्म से ढके हुए हर प्रकार की इंद्रियों से सुसज्जित कृति हैं । हमारे जीवन का मुख्य आधार तत्व जल ही है । मनुष्य अन्न के बिना फिर भी जीवित रह सकता है किंतु जल के बिना असंभव है ।
चंद्रमा स्त्री ग्रह है इसलिए इसे माता भी कहा गया है क्योंकि ये जन्मदायिनी और पालनकर्ता भी है । शिव का चरित्र जीवन देने वाले तथा संहार करने वाले देवता का है । शिव के बिना जीवन जीना असंभव है, यही अर्धनारीश्वर हैं यानि जन्मदाता तथा भोग के देवता हैं । भगवान का अर्धनारीश्वर रुप् स्त्री और पुरुष के समागम को दर्शाता है । यानि शिव भगवान है अर्थात् ‘भग + वान’ का संगम अर्थात् स्त्री के भग एवम् पुरुष के वान के संगम से बनने वाली पंचभूत तत्व की काया जो भ-भूमि, ग-गगन, व-वायु, अ-अग्नि, न-नीर है, यही भगवान को परिभाषित भी करते हैं ।
शिव का स्वरुप
शास्त्रों के अनुसार शिव के स्वरुप की कल्पना की गई या शायद जिन्होंने शिव को देखा अथवा महसूस किया तो एक ऐसा पुरुष बनाया जो अर्धनारीश्वर के रुप में है । जिसका आधा भाग नर तथा आधा भाग नारी है तथा जिनकी सवारी वृषभ है । जो गले में सर्प धारण करते हैं एवम् सिर की जटा पर जल की धारा बहती है तथा साथ ही अर्द्धचंद्र विराजमान है ।
चंद्र ग्रह उच्च का, यानि सर्वोत्तम फलदायक एवम् पूर्ण बलशाली वृष राशि में होता है, चंद्रमा एक स्त्री ग्रह है । वृष राशि स्थिर राशि है । वृष राशि में उच्च चंद्र रोहिणी एवम् मृगशिरा नक्षत्र में होता है । रोहिणी व मृगशिरा नक्षत्र की योनि ‘स्वरुप’ सर्प है तात्पर्य यह है कि एक ऐसा देवता जो देवता यानि पुरुष होकर भी स्त्री स्वरुप है । अर्धनारीश्वर के पास सर्प, जल, चंद्रमा एवम् वृषभ, शिव के स्वरुप की कल्पना को साकार करता है ।
चंद्रमा
चंद्र ग्रह जल तत्व है । शरीर में लगभग 70-80 प्रतिशत जल ही है ऐसा विज्ञान कहता है । हृदय रुपी पिता की छत्रछाया में जलरुपी शरीर का पालन-पोषण करने वाली माता चंद्र है । शरीर में ग्रहण किए जाने वाली हर वस्तु का अंततः संचार तरल पदार्थ के रुप में ही होता है । यही सफ़ेद रक्त कण चंद्र ग्रह है , इसी चंद्र रूपी जल तत्त्व के होने के कारण पूर्ण शरीर में हर चीज का जागृत रुप से संचार रक्त द्वारा होता है । यह लाल रक्त कण वस्तुतः मंगल ग्रह है । मंगल और सूर्य परममित्र है । इसलिए हृदय रूपी सूर्य का साथ देने के लिए तथा मंगल रुपी रक्त का प्रवाह बनाए रखने के लिए यह दोनों परममित्र की संज्ञा में आते हैं, शरीर में रोगनिरोधक क्षमता चंद्रमा द्वारा ही नियंत्रित होती है । शरीर की तरलता से संबंधित ग्रह चंद्रमा ही है ।
शिव की उपासना से चंद्रमा द्वारा जनित कुंडली में मौजूद दोषों का निवारण होता है , किन्तु यदि चन्द्रमा दोषयुक्त हो तब कभी-कभी ऐसी पूजा चंद्रमा के दोष बढ़ा भी देती है ।
शरीर में ही मौजूद पेट को भी चंद्र की संज्ञा दी जा सकती है।
देखा जाए तो हृदय ब्रह्मा, मस्तिष्क विष्णु तथा उदर शंकर समान है । पेट में आने वाली हर वस्तु का शमन होकर उसके द्वारा शरीर के हेतु रस बनाया जाता है । पेट में बहने वाला तरल द्रव्य (एसिड) एक अग्नि के समान हर वस्तु को मूल रूप से नष्ट कर देता है तथा कई प्रकार के रस को शरीर में प्रवाहित करता है । शरीर का पालन-पोषण करने वाली यह माता चंद्र ग्रह ही है । हमारे निराकार, आत्मिक शरीर ‘जो असल में शरीर नहीं है’ में भावनाओं का स्पंदन चंद्रमा का ही सूचक है ।
मंगल
यह ग्रह अपने - आप में सबसे विचित्र ग्रह है, जिस तरह आग का अपनी लपट पर नियंत्रण नहीं होता तथा वह लपट स्वतंत्र होकर अग्नि के केंद्र से आगे उपर की ओर विचरण करती है उसी प्रकार अकेला यही ग्रह सूर्य के चुंबकिय अधिकार - क्षेत्र को तोड़ता हुआ कितने ही महीने तक एक ही राशि में रह सकता है । इसके मार्गी या वक्री होने पर कोई विशेष नियम नहीं है ।मंगल ग्रह, राशि अनुसार मकर राशि में सर्वोत्तम फल देता है तथा कर्क में नीच का कहा जाता है। मकर राशि में नक्षत्रों की योनि नकुल, वानर व सिंह है । उत्तराषाढ़ नक्षत्र की योनि नकुल किंतु प्रथम चरण धनु राशि में है तथा घनिस्ठा की सिंह जिसके दो चरण कुंभ राशि में है। केवल श्रवण नक्षत्र ही पूर्ण रूप् से वानर योनि का है।
मंगल ग्रह पराक्रम व वीरता का सूचक है। जब यह ग्रह पूर्ण बलशाली होता है तो मकर राशि में यह महावीरता का सूचक होता है । इसी के चलते मंगल ग्रह का देवता हनुमान जी को बनाया गया है । उपरोक्त कारणों से वानर का मुख व पुरुष का शरीर धारण किए महावीर नाम से संबोधित हनुमान जी इस ग्रह के देवता हैं ।
बुद्ध
तारामंडल में सूर्य के सबसे समीप परिक्रमा करने वाला ग्रह बुद्ध है । समीप होने के कारण यह ग्रह लगभग सूर्य के साथ-साथ चलता है । अधिक से अधिक एक राशि आगे अथवा पीछे । यह ग्रह इस कारण अस्त व उदय भी होता रहता है । सूर्य राशि के लगभग 10 अंश के अंदर पड़ने वाला ग्रह अस्त माना जाता है तथा इससे कुछ आगे का ग्रह उदय माना जाता है । बुद्ध बुद्धि का सूचक है । मनुष्य की बुद्धि अतिशीघ्र परिवर्तित होती है एवम् चलायमान होती है । चंद्रमा जो मन का सूचक है इससे भी अधिक चंचल है । यह लगभग 2.5 दिन में एक राषि से दूसरी राषि में प्रवेष करता है । दूसरे क्रम पर बुद्धि है जो इसी प्रकार चंचल है यानि एक राशि में एक महीने से कुछ कम या ज्यादा रहता है तत्पश्चात सूर्य के आकर्षण में बंधकर उसके समीप रहते हुए दूसरी राशि में प्रवेश करता है । मन व बुद्धि दोनों ही चलायमान है फिर भी दोनों में एक अंतर है। चंद्रमा रूपी मन 2.5 दिन बाद ही राशि परिवर्तन करता है जबकि बुद्ध का कोई विशेष नियम नहीं है । चंद्रमा सदैव ‘मार्गी ’ - आगे की ओर एवम् सूर्य से विपरीत ही चलता है किंतु बुद्ध वक्री यानि पीछे की ओर भी चलता है एवम् सूर्य के समीप ही रहता है । निष्कर्सतः मन व बुद्धि लगभग साथ न रहने के अनुसार बने है । बुद्धि आत्मा के अनुसार ही चलती है लेकिन मन बुद्धि के विपरीत ही चलता है । बुद्ध (पुरुष) नपुसंक ग्रह है । सूर्य के अत्यधिक सामीप्य के कारण इसका अपना वजूद छिप जाता है इसलिए इसे यह टिप्पणी दी गई । बुद्धि परिस्थितिजन्य क्रिया है । बुद्ध ग्रह की अशुद्धि अथवा अवस्था के अनुसार मनुष्य की बुद्धि का आकलन किया जा सकता है।
सूर्य - आत्मा
चंद्रमा - मन
बुद्ध - बुद्धि
बुद्ध ग्रह का देवता देवी दूर्गा है । बुद्ध ग्रह की दो राशियां उत्तम मानी जाती है । मिथुन इसकी स्वराशि है तथा कन्या में