KRISHNA

धर्म में प्रश्न नहीं होते, केवल मात्र फॉलो किया जाता है LOGIC समझना या समझाना, ईश्वर को जानने के बराबर हो जाएगा और चूंकि ईश्वर को समझा नहीं जा सकता केवल महसूस किया जा सकता है इसलिए हर प्रकार का प्रश्न व्यर्थ है। Christianity में GOD शब्द अपने आप में self-explanatory है। G - generatorजो सूचक है ब्रह्मा का। यानि कि पैदा करने वाला। किसी भी कार्य के लिए सर्वप्रथम generation होना जरुरी है। Generate यानि बीज। O-operate  यानि संचालन। जिस कार्य का विचार अंकुरित होता है, वह कार्य करने के लिए action करना पड़ता है यानि पालन जो विष्णु का सूचक है। क्रिया होने के पश्चात उसकी संपूर्णता या अंत D-destroyer यानि शिव द्वारा functional होती है। सबसे पहले कुछ मीठा खाने का सोच generate होता है फिर उस सोच को practically operate करते हैं जैसें -एक लड्डू खरीदते हैं, लाते हैं, उसके पश्चात उसको खाने का आनंद व तृप्ति लेते हैं। अंततोगत्वा उस इच्छा का अंत होता है और GOD की cycle पूर्ण हो जाती है। तत्वार्थ यह है कि जीवन में यदि हम GOD में belief करते हैं तो हर आरंभ का अंत स्वीकार करते हैं। हर G और O का D अवष्य होता है। अंत तृप्ति भी होता है व वितृष्णा भी। साधारणः इस बात को समझते हुए जीवन में स्वीकारोक्ति लाना ही ईश्वर को मानना है। कृष्ण अपने समय के प्रबल शक्तिशाली व विचारवान व्यक्ति थे। यह एक विचारणीय प्रश्न है कि हमारे भगवान जैसें राम व कृष्ण क्षत्रिय क्यों थे, ब्राह्मण क्यों नहीं जबकि भगवान परशुराम जैसें ज्ञानी ब्राह्मण को भगवान या ईश्वर का संबोधन नहीं दिया जाता। एक अद्भूत conspiracy के तहत रावण जैसें योद्धा को जीतने के लिए राम-चरित्र व राम का कारण का सहारा लिया गया व असंभव जीवन जीने एवं रावण जैसे चरित्र का हनन जैसा असंभव कार्य के श्रेय से राम ईश्वर तुल्य व ईश्वर कहलाए।


श्री कृष्ण भी जन्म से क्षत्रिय थे। अपने समय के योद्धा होने के साथ-2 उन्हें ब्रह्मांड अर्थात् ज्ञान की प्राप्ति होने से वे आध्यात्मिक एवं सांसारिक रूप से श्रेठ बने। श्री कृष्ण परम् विद्वान व कूटनीतिज्ञ थे। अपने अंदर विद्यमान ईश्वर का पूर्ण साक्षात्कार उन्हें हो गया था। विशेष अस्त्र व शस्त्रों की जानकारी रखने वाले वे एक अद्भूत वैज्ञानिक थे। उस समय का विज्ञान अत्यंत उन्नत व विचित्र था। ऐसा संभवतः माना जा सकता है कि उनके पास आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त होने से यह संभव था कि वे हर प्रकार की क्रिया केवल सोचने मात्र से करने में सक्षम थे। मनुष्य का मस्तिष्क अत्यंत जटिल है व इसकी शक्ति द्वारा संपूर्ण ब्रह्मांड संचालित किया जा सकता है।