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ज्योतिष - ईष्वरीय ज्ञान - सन्मार्ग दिखाने वाला।

क्रोध को बस में करना वायू को पकडने जैसा है।

अंर्तसृष्टि से आत्मा में आने वाला क्रोध प्रकट करना चाहिये - व्यर्थ क्रोध नाश का कारक है।

अग्निगुरू द्विजातिकम् ब्राह्मण वर्णाकम् गुरू।

किसकी स्त्री, किसके बेटे, किसका कौन कुटुम्ब है?

अपने कर्माें का फल स्वयं ही भोगना पड़ता हैं

स्त्री-पुरुष की कमजोरी है और पुरुष-स्त्री की जरूरत है।

माल मुफ्त - दिल बेरहम।

अधिक प्रसन्नता बुद्वि भ्रमित कर देती है।

संयम ही शांति प्रदान कर सकता है।

यदि स्वंय को जीत लिया तो सबको जीत लिया - यही सत्य है।

मर्द की फितरत - जितने खाते खुल जाएं उसकी तो कमहतमम बढ़ी।

कर्मों का इलाज तो है किन्तु इच्छाओं से मुक्ति न मिली तो गति नहीं हो सकती।

इस संसार में कुछ नहीं छुपता।

जो लोग माफ कर देते हैं वो दुखी नहीं होते।

बुद्व को भी तत्वज्ञान मृत्यु को देखकर ही हुआ था।

संयोग और अनुराग माया में डालते हैं, वियोग और विरक्ति से ज्ञान होता है।

हानि पहॅुंचाने के लिये शब्दशक्ति का प्रयोग नहीं करना चाहिये।

एक फोन काल, एक नाराजगी, एक मुस्कुराहट, एक सोंच, एक विचार, एक राय, एक बात आपकी जिन्दगी बदल देती है।

रोने वाले को कोई प्रेम नहीं करता, सब दया करते हैं।

क्षमाशील  बनो सब अपने हिसाब से सही है कोई गलत नहीं है।

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